कुछ पल तो जिया था मैं, करार भी था कुछ, बेचैनी भी थी कभी
कभी बेपरवाह था तो कभी लापरवाह, आवारगी कहते थे उसे सभी ।
धूप सुनहरी है, आसमान में है बदली, चाँदनी ख़िलती है आज़ भी अभी
पर आती नहीं मन के बागान पर वो बहारें, जो आती थीं कभी ॥
The other day I was sipping tea by my balcony's window, You know those languid hours, when ideas mostly come and go, A strong wind swept...
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